कलरीयापट्टू क्या है ?
- ये एक पुरानी मार्शल आर्ट तकनीक है।
- इसकी उत्पत्ति दक्षिण भारत के केरल से हुई है।
- कलरी का अर्थ 'स्क़ूल' या 'व्यायामशाला' है।
- पायट्टु का अर्थ है 'युद्ध या व्यायाम करना'
- इसे सिखने में कई वर्ष लग जाते है।
- इसे 7 साल की आयु से ही सीखा जाता है।
- इसे किसने शुरू किया इसके पीछे कई अवधारणाएँ है एक अवधारणा के मुताबिक इसे अगत्स्य मुनि शुरू किया था।
- यही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने दुनिया के इस कला से रूबरू कराया।
- इसे जहा सीखा जाता है उस जगह को 'कलरी' कहते है जिसे आम भाषा में अखाड़ा भी कहा जाता है।
कलरीयापट्टू प्रशिक्षण को तीन भागो में वर्गीकृत किया जाता है मिथारी, कोलथारी और अंकथारी।
मिथारी : इस प्रशिक्षण में शरीर को मज़बूत और ताक़तवर बनाने के लिए भिन्न तरह के कसरते कराइ जाती है।
कोलथारी : इस प्रशिक्षण में नए योद्धा को लकड़ी से (अलग अलग तरह की लकड़ी) से लड़ना सिखाया जाता है।
अंकथारी : इस पड़ाव में भाले, ढाल, तलवार आदि हथियार दिए जाते है।
- आखिर में योद्धा बिना हथियार के भी लड़ना सीखता है।
- इस कला के अंत में कलरी 'भार्मा' का विशेष प्रशिक्षण होता है।
- उद्देश्य होता है 107 ऊर्जा बिन्दुओ (मानव शरीर के) को सक्रिय (Active) बनाना।
ये भी पढ़े...
if you have any doubts, let us know