Supereme Court of India, History/Organization/Appointment
सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court)
सर्वोच्च न्यायालय भारत में सर्वोच्च स्थान रखता है। भारत में न्यायालय की यह व्यवस्था पहले से ही थी ऐसा नहीं है, इस न्यायालय की इस प्रणाली से हमें अंग्रेज़ों ने अवगत कराया था। पहले भारत में न्याय करना राजा का काम था। लेकिन जब अंग्रेज व्यापर के बहाने भारत में आये तब से कहा जा सकता है के यह प्रणाली हमें हाथ लगी। 1773 के एक एक्ट दे द्वारा भारत में न्यायालय की स्थापना हुई जिसे रेगुलेटिंग एक्ट कहा जाता है। 1774 में कलकत्ता (कोलकाता) जो उस भारत की राजधानी थी ) में सब से पहले न्यायालय की स्थापना हुई थी।भारत सरकार अधिनियम, 1935 की बुनियाद पर करीब दो साल बाद अर्थात 1937 में एक न्यायलय की स्थापना ही जिसे Fedral Court कहा जाता था। ये अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं था ये लन्दन के प्रिवी कौंसिल के अधीन था मतलब इसके दिए निर्णय को चुनौती दी जा सकती थी तो ऐसा कहा जा सकता है के न्यायालय को व्यापक अधिकार प्रदान नहीं किये गए थे।
1937 में Fedral Court के मुख्य न्यायाधीश को Head Of Court कहा जाता था इस प्रणाली के आखिरी दिन अर्थात 28 जनवरी, 1950 को सर्वोच्च न्यायालय का उद्धघाटन हुआ और Fedral Court के Head of Court को स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया जो हरिलाल कानिया थे (कई जगहों ये नाम हीरालाल भी मिलेगा) .
स्वतंत्र भारत का सर्वोच्च न्यायलय
भारत में न्यायालय की एकल व्यवस्था को अपनाया गया है। यानी ये अपील का सर्वोच्च न्यायालय है। भारत में न्याय सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय का एक प्रमुख स्थान है संसद भी उनके विनियमन के लिए अधिकृत है।भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत ब्रिटेन के प्रिवी कॉउंसिल का स्थान ग्रहण किया था जो अपील का सर्वोच्च न्यायालय था और है। जिस तरह अमेरिका में द्वैध व्यवस्था को अपनाया है लेकिन भारत ने एकल व्यवस्था को अपनाया है। न्यायालय की द्वैध व्यवस्था में न्यायालय केंद्र के लिए अलग और राज्यों के लिए अलग होते है। संघीय कानून को संघीय न्यायक्षेत्र द्वारा लागु किया जाता है और राज्य कानून को राज्य न्यायक्षेत्र द्वारा लागू किया जाता है। लेकिन भारत का सर्वोच्च न्यायालय केंद्र एवं राज्यों विधियों को लागू करता है इसे व्यापक अधिकार प्राप्त है।
भारतीय संविधान के भाग V में अनुछेद 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय के गठन, स्वतंत्रता, शक्तिया, प्रक्रिया आदि का उल्लेख है।
उच्तम न्यायालय का गठन
1950 से पूर्व संविधान के आर्टिकल 1,2,3 में लिखा गया के भारत में एक उच्चतम न्यायालय होगा जिसमे न्यायाधीश की मूल रूप से संख्या 8 होगी जिसमे एक मुख्य न्यायाधीश होगा और अन्य न्यायाधीश होंगे। बाद में न्यायाधीशों की ये संख्याओ में वृद्धि होती गयी क्युके देश में जनसंखया बढ़ना, न्यायालय में मामलो (Cases) का बढ़ना भी न्यायाधीशो की संख्या में वृद्धि एक कारण था।सबसे पहले न्यायाधीशो की संख्या में वृद्धि 1956 में देखने को मिली जब संसद ने न्यायाधीशों की संख्या 10 निश्चित की थी फिर 1960 में ये बढ़कर 13, 1977 में 17 और फिर 1986 मुख्य न्यायाधीश समेत न्यायाधीशो की संख्या 25 निश्चित की गयी उच्चतम न्यायालय (न्यायाधीशो की संख्या ) संशोधन अधिनियम, 2008 के अंतर्गत 2009 में उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशो की संख्या 31 निर्धारित की गई जिसमे मुख्य न्यायाधीश भी शामिल है। लेकिन न्यायाधीशो के ये पद सारे भरे हो ऐसा नहीं है।
न्यायाधीशो की नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशो की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। न्यायाधीशो की नियुक्ति राष्ट्रपति अन्य न्यायाधीशो एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सलाह के बाद करता है। उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशो की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश का परामर्श आवश्यक है।इस परामर्श देने के अधिकार पर कई विवाद हुए सबसे प्रथम विवाद न्यायाधीश मामला (1982) का इस मामले ने सुप्रीम कोर्ट ने कहा था के परामर्श का मतलब सहमति प्रकट करना नहीं होता बल्कि विचारो आदान-प्रदान करना होता है लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने दिव्तीय न्यायाधीश मामला (1993) में ये आदेश दिया के परामर्श का मतलब सहमति ही होता है।
इस तरह तीसरे न्यायाधीश मामला (1998) में ये व्यवस्था हुई के मुख्य न्यायाधीश को 'बहुसंख्यक न्यायाधीशो की विचार' प्रक्रिया के तहत माना जाएगा जिसमे दो वरिष्ठम न्यायाधीशों की सलाह भी मुख्य न्यायाधीश के लिए आवश्यक होगी वरना राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश की सलाह के लिए बाध्य नहीं होगा।
न्यायाधीशो की अर्हताएं
उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए किसी व्यक्ति में निम्न अर्हताएं होनी चाहिए- वो भारत का नागरिक हो
- कसी उच्च न्यायालय का कम से कम 5 साल की लिए न्यायाधीश के पद पर रह चूका हो
या
- उच्च न्यायालय या विभिन्न न्यायालय में 10 साल के लिए अधिवक्ता(Advocate) रह चूका हो
या
- राष्ट्रपति की नज़र में वो सम्मानित न्यायावादी होना चाहिए
Note : उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने के लिए संविधान में न्यूनतम आयु का उल्लेख नहीं है
रष्ट्रपति या इस कार्य के लिए उसके द्वारा नियुक्त व्यक्ति न्यायाधीश को शपथ दिलाता है।
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