महिलाए मस्जिद में क्यों जाए ?
दंपति यास्मीन जुबेर अहमद पीरजादा और जुबेर अहमद नज़ीर अहमद पीरजादा की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा। ये मुस्लिम महिलाओ के मस्जिद जाने पर पाबन्दी क्यों लगाई गई है इस बारे में है।
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा के इस मामले में सिर्फ सबरीमाला के सुप्रीम फैसले की वजह से विचार करेगा। याचिकाकर्ता के वकील से कोर्ट ने कई सवाल किये। और खासकर सबरीमाला को बनाया आधार।
सबरीमाला के लिए क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
28 सितंबर को 4-1 के बहुमत से फैसला सुनते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओ के प्रवेश पर पाबन्दी को असवैधानिक ठहराया था। कोर्ट ने इस पर पाबन्दी लिंग आधारित बताया था।
मुस्लिम दंपति मुस्लिम महिलाओ के मस्जिद में प्रवेश और नमाज़ पढ़ने के अधिकार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले को आधार बनाया और महिलाओ के मस्जिद में जाने पर रोक को मौलिक अधिकार का उल्ल्घन बतयाया।
जब याचिकर्ता के मौलिक अधिकार के उल्ल्घन कहे जाने पर कोर्ट ने उन्हें कई सवाल किये के क्या मौलिक अधिकार के हनन का दावा किसी गैरसरकारी संस्था (NGO) से किया जा सकता है। क्या एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के खिलाफ बराबरी के मौलिक अधिकार का दावा कर सकता है ? कोर्ट ने कहा के हम इस बात पर सहमत है के राज्य को बराबरी का व्यहार करना चाहिए, लेकिन किसी व्यक्ति पर यह कैसे लागु होगा।
कोर्ट ने सवाल किया के क्या मक्का में महिलाओ को मस्जिद प्रवेश करने की इजाज़त है ?
जस्टिस बोबडे जी ने वकील से सवाल किया के क्या दुनिया के अन्य जगहों पर मुस्लिम महिलाओ को मस्जिद में जाने की इजाज़त है। वकील ने कहा हाँ, वकील ने कहा के कनाडा में भी मस्जिद में महिलाओ को आने दिया जाता है। अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा के इस पर विचार किया जायेगा।
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